Monday, April 6, 2020

मिल बैठ के वो हंसना वो रोना चला गया अब तो कोई ये कह दे करोना चला गया

थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते-करते
कुछ और थक गया हूं आराम करते-करते

बहरहाल आने वाले वक़्त के लिए दुआ करनी चाहिए और जो हमारे बीच खाइयां हैं, दरारें हैं उन्हें भरने की कोशिश करनी चाहिए। नई नस्लों के लिए एक नई दुनिया बनानी है। जिसमें किसी को भी एहसास-ए-कमतरी न हो और किसी को भी एहसास-ए-बरतरी न हो। इंसान का इंसान से रिश्ता और मजबूत करने की जरूरत है। हवस ख़त्म तो नहीं होगी। मगर उसकी दीवारें तंग करनी होगी। अपनी ज़मीन को अब अपनी मां की तरह नहीं अपनी औलाद की तरह दुलार देना होगा। उसके सारे दुख, उसके सारे ज़ख्म मिलकर भरने होंगे। उसके नोचे गए ज़ेवर उसे वापस लौटाने होंगे। हमें पैसे के पीछे भागने की आदत कम करनी होगी और ज़िन्दगी के पीछे भागने की आदत ज़ियादा डालनी होगी। नहीं तो हम अभी सिर्फ़ कुछ हफ़्तों या महीनों के लिए क़ैद हुए हैं। अगर यह सिलसिला जारी रहा तो आगे मुमकिन है कि हमें उम्र-क़ैद की सज़ा दे दी जाए।
सभी शायर दोस्तों की तरफ से यह दुआ करता हूं कि हमें ऐसी सज़ा आगे कभी न मिले और अपने एक शेर के साथ बात ख़त्म करता हूं।

मिल बैठ के वो हंसना वो रोना चला गया
अब तो कोई ये कह दे करोना चला गया


No comments:

Post a Comment

स्वयं को पसंद करना सीखना(Learn to like your self )

आत्म-स्वीकृति आत्म-प्रतिष्ठा  पिछले सेक्शन में, हमने देखा कि आत्म-प्रतिष्ठा किस तरह से पैदा होती है और आपकी आत्म प्रतिष्ठा को कम या ज्यादा ...